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आईपीएस-दीपका के बच्चों ने जाना जीवन में शांति का महत्व

हम अपनी दुनिया में शांति बनाने के लिए हर संस्कृति और आस्था की सुंदरता को अपनाएं-डॉ. संजय गुप्ता।

कोरबा : प्रत्येक वर्ष 21 सितंबर के दिन को विश्व शांति दिवस के रुप में मनाया जाता है।वर्ष 2002 से पहले विश्व शांति दिवस को सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को मनाया जाता था, विश्व शांति दिवस की शुरुआत वर्ष 1982 में हुई थी।विश्व शांति दिवस का अर्थ पूरे विश्व में शांति स्थापित करना है।आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने का कार्य संयुक्त राष्ट्र का है,क्योंकि आजकल के युग में चारों ओर अशांति फैली हुई है।इस दि पूरे विश्व में सफेद कबूतर उड़ाने की परंपरा है,क्योंकि सफेद कबूतर शांति का प्रतीक माना जाता है।

इस दिन पूरे विश्व को यह प्रेरणा दी जाती है कि हम सब लोग भाईचारे के साथ रहें यह मुहिम पिछले कई वर्षों से चलाई जा रही है,लेकिन इसका असर कम ही देखने को मिल रहा है। आज का युग एक ऐसा युग बन गया है जिसमें हर आदमी अपने से नीचे वाले को कुचल कर आगे बढ़ना चाहता है और इसी कारण से यह अशांति फैली हुई है।

दीपका स्थित इंडस पब्लिक स्कूल में विश्व शांति दिवस के उपलक्ष्य में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। विद्यालय के बच्चों ने कई कार्यक्रमों के द्वारा शांति का संदेश देने का प्रयास किया।विभिन्न प्रकार के पेंटिंग में भी पूरे विश्व से शांति की अपील की।बच्चों को शांति का महत्व बताया गया।कार्यक्रम में विशेष रुप से बच्चों को शांति का महत्व और जीवन में इसके महत्वपूर्ण स्थान से अवगत कराया गया।

विद्यार्थियों को पल-प्रतिपल यथा संभव शांति का परिचय देने हेतु प्रेरित किया गया। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रत्येक इंसान को शांति चाहिए।आज मानव तनाव ग्रस्त भरी जिंदगी में सभी मनुष्यों के लिए शांति परम आवश्यक है। आज पूरा विश्व शांति के अभाव में युद्ध के कगार में खड़ा है।

संस्था के प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने कहा कि विश्व शांति दिवस में हमारा यही प्रयास होना चाहिए कि हम प्रत्येक क्षण प्रत्येक के लिए शांति की दुआ करें क्योंकि आज की दिनचर्या में स्पर्धा के दौर में सभी व्यक्ति के मनांमष्तिष्क में तनाव हावी रहती है एवं आज हम अन्य का भला न सोचकर स्वयं के हित की ओर ज्यादा आकृष्ट रहते हैं एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर हम विश्व शांति की भावना दे विमुख होते जा रहे हैं। महाभारत काल से लेकर आज तक शांति का महत्व बरकरार है।यदि द्वापर युग में भी दुर्योधन के द्वारा श्री कृष्ण के द्वारा प्रस्तुत शांति संदेश को स्वीकार कर लिया गया होता तो युद्ध की नौबत ही नही आती और सभी शांति पूर्वक अपना राज्य संभालते। तात्पर्य यह है कि शांति शाश्वत है।

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